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भगवत्प्राप्ति और हिन्दू संस्कृति

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1169
आईएसबीएन :00000

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इसमें भगवान श्रीकृष्ण की अटपटी दिखनेवाली लीलाओं का वर्णन किया गया है और भारतीय संस्कृति का भी उल्लेख किया गया है।

Bhagvat Prapti Evam Hindu Sanskriti-A Hindi Book-by Hanuman Prasad Poddar - भगवत्प्राप्ति और हिन्दू संस्कृति - हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।श्रीहरि:।।

नम्र निवेदन

श्रीभाईजी (हनुमानप्रसाद पोद्दार) की महनीय लेखनी से प्रसूत स्फुट लेखों के दो संग्रह (1) ‘तुलसीदल’ और (2) ‘नैवेद्य’ के नाम से कई वर्ष पूर्व प्रकाशित हुए थे। पाठकों को वे कितने रुचिकर प्रतीत हुए इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रथम संग्रह की सात और द्वितीय की पाँच आवृत्तियाँ हो चुकी हैं। लगभग दो वर्ष हुए उक्त दोनों संग्रहों के नवीन संस्करण ‘भगवच्चर्चा’ भाग 1-2 के नाम से प्रकाशित हुए हैं। उन दोनों ही संग्रहों का विषय ऐसा है जो कभी पुराना तो होने का नहीं। जिस प्रकार उनके प्रतिपाद्यश्रीभगवान् पुराणपुरुष होने पर भी नित्य नवीन है, उनकी चर्चा में उनके भक्तों को नित्य रस की अनुभूति होती है- ‘स्वादु स्वादु पदे पदे’ उसी प्रकार जब तक भगवद्विश्वासी पुरुष इस देश में रहेंगे, तब तक इस प्रकार के ग्रन्थों की माँग सदा ही बनी रहेगी और इसी में देश का और विश्व का कल्याण है।

अध्यात्म ही भारत का प्राण-सर्वस्व है, उसी के बल पर भारत अनादिकाल से जीवित है, उसी के कारण उसका मस्तक आज भी जगत् के सामने ऊँचा है। संस्कृतियाँ और राष्ट्र विश्व के रंगमंच पर आये और उसी प्रकार विलीन हो गये, जैसे जलराशि में बुदबुदमाला। एक भारतीय संस्कृति ही ऐसी है, जो विविध विरोधी शक्तियों के प्रबल प्रहारों से जर्जरित होकर भी अरबों वर्षों से अक्षुण्ण बनी हुई है और वर्तमान युग में चारों ओर हिंसा, कलह, अशान्ति और असंतोष के बादल मँडरा रहे हैं, प्रलयंकर युद्ध-परम्परा की विभीषिका मानवता को अहर्निश त्रस्त किये हुए है।


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